मजदूरी मजदुर
दिहाड़ी वाळो जद घर सूं निसरै, खुद रा,माईता रा सपना सागै आखै दिन सुरजी तळै तपै परिवार सुख री आस मांय सैंस मिनखां री बात सुणे जण जा'र आ दिहाड़ी मिळै पण जगत रा अधकिचरा धनी मजूर री मजूरी री तौहीण करै रिस्तेदार बी रिस्तेदारी छोडो बतळावै तो लिलाड़ सळ भरै मजदूर च्यारां कानी सूं दबेल है अमीरां री अमीरी रो खेल है गरीब नै कुण कद साख देवै दिहाड़ीयो हमेस पिसतो रेवै मिनखां री आ मानसिकता समाज मांय दू भांत भर देवै मजूरियो हमेस ऄकलो रेवै। पवनकुमार राजपुरोहित