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फ़रवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मजदूरी मजदुर

  दिहाड़ी वाळो जद घर सूं निसरै, खुद रा,माईता रा सपना सागै आखै दिन सुरजी तळै तपै परिवार सुख री आस मांय सैंस मिनखां री बात सुणे जण जा'र आ दिहाड़ी मिळै पण जगत रा अधकिचरा धनी मजूर री मजूरी री तौहीण करै रिस्तेदार बी रिस्तेदारी छोडो बतळावै तो लिलाड़ सळ भरै मजदूर च्यारां कानी सूं दबेल है अमीरां री अमीरी रो खेल है गरीब नै कुण कद साख देवै दिहाड़ीयो हमेस पिसतो रेवै मिनखां री आ मानसिकता समाज मांय दू भांत भर देवै मजूरियो हमेस ऄकलो रेवै। पवनकुमार राजपुरोहित 

करणी माता भजन देशनोक दरबार

  मां काबां वाळी किनियाणी... ऊंचो शिखर भवन निराळो देशज देशनोक धणयाणी भगतां री अरदास सुणै मां काबां वाळी किनियाणी... तू बौपार वणज चलावै मेहाई ई पुरै अन्न पाणी दास रै सिर हाथ राखै मां काबां वाळी किनियाणी... दूर देसावर बैठ्यां हां थारै भरोसै माताराणी दीन दुखी री बात सुणौ मां काबां वाळी किनियाणी... थारी किरत पवन मांडी तू सिखाई कलाम चलाणी नित उठ मैं थारौ नांव रटूं मां काबां वाळी किनियाणी... ©पवन कुमार राजपुरोहित

होली पर राजस्थानी कविता

होळी गीत 'धमाळ' सैर मै बैठ्या गांव उडीकै, कार-बार नहीं छोड़ उठिजै। अंतस फागण हिलोर उठावै, चंग धमीड़ा री याद दिरावै। बेली भायलां नै फोन मिलावै, केवै,अबकै होळी जोर बतावै। गांव रो जनसंघ खाटू जासी, श्याम धणी रै धोक लगासी। चालौ साथीड़ा गांव चालस्यां, काम-काज नै फैर दैखस्यां। पचरंग बसंत री मौज लूटस्यां, चंग,गुलाल अर गैर खेलस्यां। ©पवनकुमार राजपुरोहित

बेटा और बेटी

चित्र
  बेटी बडी हुवै तो, घर गा नै चिंत्या हु ज्यावै। बेटो बडो हुवै जद, वींनै घर गी चिंत्या सतावै।। इयां मत जाणो कै, फगत बेटी ई घर बसावै। बेटो घर सामणनै, जग्यां जग्यां धक्का खावै।। बेटी रै सासरो बी, खुद रो घर सो बण जावै।।                         पण लाडेसर बेट नै, वो घर रोजीनां याद आवै।। सैंस मुंडा सैंस बातां, ओ जग झूटा भाटा भिड़ावै। बेटो कम न बेटी कम, कलम पवन री साच बतावै।     ©पवनकुमार राजपुरोहित                                  

राजस्थानी कविता !!गांव नै गांव रैवण द्यो!!

https://youtu.be/5uFogTjK5Ck?si=3hO0xNq1ewSjo8EU   सैरां सूं लाख भली म्हारी पैचाण रैवण द्यो उभी बाड़ रै नेड़ै हथाई वाळी ठौड़ रैवण द्यो। गंगाजळ सो मिठो पाणी सरवर री पाळ रैवण द्यो गुवाड़ बिचाळै डांगरां री वा घमसाण रैवण द्यो। गळी री रेत मांय खोजां री पिछाण रैवण द्यो सुखाण मांय थेपड़ियां री थरपाण रैवण द्यो। करमा बाई रै खीचड़ळै मांय धोळी धार रैवण द्यो ऊभो जीमणो छोड़'र बाजोट री सतकार रैवण द्यो। दिवाळी रा दिया अर होळी री पिचकार रैवण द्यो आखातीज,गणगौर,भादवै रा तीज तिंवार रैवण द्यो। मिंदर मै झांझरगै झालर री झणकार रैवण द्यो मिनखपणै रो सुभाव जीवां माथै उपकार रैवण द्यो। हीय मै प्रेम अर भेळो भायां रो कड़ुमो रैवण द्यो कलम पवन री कैवै अजी गांव नै गांव रैवण द्यो। .पवनकुमार राजपुरोहित https://youtu.be/5uFogTjK5Ck?si=3hO0xNq1ewSjo8EU <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1781997236664824" crossorigin="anonymous"></script>

थूं बदळबा लागगी

  मैं रोज ऊंची डिगां मारके तेरा गुणगान गाया करतो थारै भोळ स चेहरे माथै भरोसे री टेर लगाया करतो पण मनै ठा कोनी हो कै समय अर घड़ी ऄड़ी आगी होळै होळै थूं बदळबा लागगी! तनै राजी राखण खातर मैं झूटी बातां रा हुंकारा भरतो थूं जठै ऄकली चाल पड़ती बठै मेर थारै बिन्या न सरतो पण हिड़दै रै बिस्वास नै थूं अब कुचर कुचर ही खायगी होळै होळै थूं बदळबा लागगी ©पवनकुमार राजपुरोहित

राजस्थानी कविता म्हारी पिछाण

म्हारी पिछाण   जिण भासा मांय सोचूं,मांडु मैं जिण भासा मै बोलूं चालुं जिणरा मैं गीत गुण गुणाऊं जिणमै जीवन रा सुपना जोऊं जिणरा सबदां सूं प्रीत रचाऊं प्रीत रचा’र मीत नै रिझाऊं मैं निज भासा री बात बताऊं इण खातर जीऊं मर ज्याऊं कहे पवन आ पिछाण बणाऊं बोली सूं जग रै हिरदै बस जाऊं! ©पवनकुमार राजपुरोहित