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मैं और मेरा मन(कविता)

 मेरा मन गुफ्तगू का शौकीन है, पर,यहाँ गुफ्तगू करता कौन है? प्रत्येक अंतरजाल में फसा हुआ, एक-दूजे की सुध लेता कौन है? मैं चाहे कितना भी अकेला रहूँ, साथ निभाने को पूछता कौन है? खुदगर्ज यहाँ पर मिल जाएंगे, लेकिन मेरी फिक्र करता कौन है? किसी को कुछ कहूँ,या न कहूँ, कवि कुमार की सुनता भी कौन है?

राजस्थानी नै बिसरा दी।

  आपणै अठै बूढा बडैरा कैया करै कै आजकाल रा टाबर सेंसकारां नै भूल ग्या अर बेन बेटीयां आपणा गीत अर भजनां नै भूलगी।अब बायां लांणा कांई करै! इण मांय सगळो दोस बैनां रो कोनी। इण मै चिनो'क बायां -टाबरां रो है पण घणकरो सरकारां रो अर आपणो है।सरकार रो तो इयां है कै बे है जका भासा री मानता खातर आज तांई की कोनी करियो अर आपणो इयां है कै आपां खुद आपणी भासा नै सनमान कोनी देवां अर न दियो कदी।थे कदी सुण्यो कांई कै बंगाल,तमिलनाडु,अर महाराष्ट्र रो मिनख बठै री मायड़ भासा है जकी नै बोलै कोनी! पण आपणै अठै इस्या कई लाध ज्यासी जका रै सागै आपां राजस्थानी बोलस्यां जणा बे है जका हिन्दी का पछै कोई दूजी ओपरी भासा मै जवाब देसी। अरे तो हीया फुटेड़ा तनै ठा नी है कै थारी पिछाण दूजी जगां गयां पछै इण ही मायड़ भासा सूं हुसी।मैं ऄक कहाणी सुणी कै ऄक टाबर हुवै जको पढ़बां तांई बा'रै परदेस जावै अर वो पढ़-लिख'र पाछौ आयो जद खुद री मां सागै बठै री भासा मै बंतळ करबां लाग्यो जणा मां है जकी कांई कैयौ ठा है?मां कैयौ थूं म्हारौ बेटो नी हु सकै थूं कोई दूजो ही है, जणा बेटो बोल्यो कै मां थूं इयां कियां कैवै जण मां बोली कै मैं थनै...