आजादी
मैं ऄक दुकनदार रै सागै सागै अेक छोटो सो लेखक बी हूं। इण लेखक रै गुण नै कदी कदी दुनियां मांय होवण वाळी क्रियावां माथै लिखण खातर बारै काढ़ लिया करूं। मैं जद घर सूं निसरुं तो म्हारै सागै म्हारै मन री जकी कल्पना है वा बी बरोबर निसरै।चलतो फिरतौ जग मांय अर कुदरत सूं होवण वाळी घटनावां माथै निजर राख'र मन ई मन मांय कीं न कीं रचाव करतो रेऊं।हुवै जठै तांई मैं रचाव नै छोटो सो रूप दिया करूं पण कदी कदी मन मांय अेक चीज नै या कोई चितराम नै लेय'र घणी सारी बातां उमटै जद बीं नै लेख रो रूप दे दिया करूं।ओ जको आज रो रचाव है वो है आजादी माथै! कांई हुवै आ अजादी? जकी मांय कोई बी मिनख खुद री मन मरजी सूं सांस ले सकै फिर घूम सकै,चावै जको काज कर सकै। आज आपां मिनखां नै आ सगळी आजादी है, पण सोचो १९४७ सूं पैली रा आपणा बडेरां नै आ मिली कांई? सोच'र देखौ उणारी हालत रै बारै मांय! वे इण सागी सुतंतरता खातर भौत ताफड़ा तोड्या हा जण जा'र आ आजादी बां लोगां सूं बेसी आपां नै मिली।पण आपां उणरौ कांई फायदो उठा रह्या हां? खुद रा सौक पूरा कर लेवां मन चायो काज करां,फिरां आद। बां सौक मांय आ कोनी देखां कै आपणै कारण कोई दूजै री आजादी मोसीज रैयी है। घर नै,खुद रै व्यक्तित्व नै कुदरत प्रेमी अर आधुनिक बतावण रै चक्कर मांय छोटा छोटा पंछियां नै घरां मांय कैद कर'र राखां अर इयां सोचां कै इण सूं घर री सौभ्या बधै।जग नै अर घरै आवण वाळा बटाऊवां नै आ बतावण री कोसिस करां कै म्है दयालु हां अर आं पंछियां री घणी सेवा चाकरी करां। खुद नै जीव प्रेमी बी बतावां पण पिंजरै मांय बंद वो पंछी ई जाणै कै थे किताक जीव प्रेमी हो। अर बीं री आत्मा ई जाणै कै वो थारी सेवा सूं कितोक सोरो अर सुखी है इण बंदिस मांय।सोच‘र देखौ जे पंछियां री जग्यां मिनखां नै इयां इज जेळ मांय कैद कर'र चौखी खातिरदारी अर दुनियां रा चौखा चौखा पकवान जीमावै तो जीम सकैलो? इणरौ पडूतर है ना! क्यूं कै खुद री छात चाहै कित्ती बी टूटेड़ी हुवौ बठै री रोटी इमरत समान है अर कैद रा छप्पन भोग बी जैर हुवै।खुद रै घर रो चूण अर आभै री खुली हवा सगळा नै इज चौखी लागै क्यूं कै वा आजादी रो इमरत है।कैद मांय बंद उण पंछी रो जीव बी करै कै मैं म्हारै पांखड़ा नै पसरा'र खुलै आभ री सैर करुं,नाचूं,गाऊं। पण आपां उणरी पीड़ क्यूं कोनी समझ रह्या ? अरे मिनखो जीव नै जी’ण देवौ इण कुदरत नै बणावण मै अर अवेर राखण मै बां सगळा जीवां रो योगदान है जितो मिनख कदी कोनी कर सकै।
मैं ऄक दुकानदार अर लेखक होवण रै नाते बां सगळा दुकनदारां सूं अरज करुं जका पंछियां री खरीद बिक्री करै!भाई रै ऄड़ो बोपार नहीं करणो जिण सूं कोई रो अंतस जीव आपां नै दुरासीस देवै अर गाळ काढै।
पंछियां री आवाज
पांख दीन्हा परमातमा
म्हारी आभै बसै छै आतमा,
रे मिनख थूं क्यूं बेरी हुयो
म्हारै अंतस नै मोस दियो
म्है थारा घर बार न कोस्या
पण थे म्हारा क्यूं कोस रह्या
म्हारौ जीव बी आजादी चावै
सोचो!इण पिंजरै मै किया रेवै
थोड़ी घणी तो दया करल्यो
अबै म्हानै बी सुतंतर कर द्यो।
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