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राजस्थानी कहाणी .त्यागत का तिंवाळा.

रूपलो अर सांवतो जोरदार भायला हा। दोन्यु जणा गांव आळै पिंपल माथै बैठ्या झूटी साची हथाई करबो करता।आखै दिन मै रोटी बाटी खावण खातर घरै जांवता अर पाछा आ'र बेई बातां।गांव रा मिनख उणारै सामी तो आंवता जांवता कैंवता कै यारो क्यूं झूटी लोद बेचो कोई काज कर लिया करो।पण मोट्यार इत्ता पक्का हा कै बां रै गांव आळा री आं बातां रो कोई फरक कोनी पड़तो।वे बैठ्या हथाई तो करता जकी करता ही हा,पण सागै सागै गांव रै हर मिनख रै काम काज माथै निजर राखता कै कुण कांई करै है।थोड़ी ताळ पछै गुवाड़ कानी सूं रामो आंवतो दिस्यो अर बो इयां टिप्पा सा खांवतो बगै हो जण रूपो सांवत नै बुझ्यो कै यार ओ इयां कियां टिप्पा खावै,चाल देखां! वे इयां आपस मांय बतळावै ई हा जितै न छैकड़ रामलो बां दोनूंवां रै कनै पूग ग्यो अर कैवै अरे ओय आज कांई गप्पा ठोको दोनूं जणा।रूपो तो बीं रो मुंडो खोलता ही समझ ग्यो कै कांई बात है अर कियां डोलतो फिरै। बीं नै तो सोरम आयगी,क्यूं कै दारू री भभक छानी कोनी रेवै। फेर बी वो बूझ लियो कै यार म्है तो इयां ई हथाई करां पण तनै टिप्पा कियां लागै है। रामो कैवै यार थोड़सी सरधा कोनी आज,अर सागै तिंवाळा सा आवै। इयां कैय'...